श्री भागवत गीता आरती (भगवद्‍ गीता आरती) अंग्रेजी और हिंदी में

भगवद गीता, जिसे अक्सर "ईश्वर का गीत" कहा जाता है, हिंदू दर्शन और आध्यात्मिकता में बहुत महत्व रखती है। यह एक पवित्र ग्रंथ है जिसमें भगवान कृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में अर्जुन को दी गई शिक्षाएँ शामिल हैं।

भक्ति और श्रद्धा के प्रतीक के रूप में, श्री भागवत गीता की आरती इस कालातीत ग्रंथ के प्रति कृतज्ञता और आराधना की हार्दिक अभिव्यक्ति है।

भगवद गीता आरती हिंदी में

जय भगवद् गीते,
जय भगवद् गीते ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणि,
सुन्दर सुपुनीते ॥

कर्म-समुर्म-प्रकाशिनी,
कामशक्तिहरा ।
तत्त्वज्ञान-विकासिनी,
विद्या ब्रह्म परा ॥
जय भगवद् गीते...॥

निश्चल-भक्ति-विधायिनी,
निर्मल मलहारी ।
शरण-सहस्य-प्रदायिनी,
सब विधि सुखकारी ॥
जय भगवद् गीते...॥

राग-द्वेष-विदारिणी,
करिणि मोड सदा ।
भव-भय-हरिणी,
तारिणी परमानन्दप्रदा ॥
जय भगवद् गीते...॥

आसुर-भाव-विनाशिनी,
नाशिनी तम रजनी ।
दैवी सद् गुणदायिनी,
हरि-रसिका सजनी ॥
जय भगवद् गीते...॥

समता, त्याग त्यागनी,
हरि-मुख की बानी ।
सकल शास्त्र की स्वामिनी,
श्रुतियों की रानी ॥
जय भगवद् गीते...॥

दया-सुधा बरसावनी,
मातु! कृपा कीजय ।
हरिपद-प्रेम दान कर,
अपनो कर लीजै ॥
जय भगवद् गीते...॥

जय भगवद् गीते,
जय भगवद् गीते ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणि,
सुन्दर सुपुनीते ॥

आरती श्री भागवत गीता अंग्रेजी में

जय भगवद गीता,
जय भगवद गीता ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणी,
सुन्दर सुपुनीते ।
॥ जय भगवद गीता...॥
कर्म-समरम्-प्रकाशिनी,
कामशक्तिहार ।
तत्त्वज्ञान-विकासिनी,
विद्या ब्रह्म परा ॥
॥ जय भगवद गीता...॥

निश्चल-भक्ति-विधायिनी,
निर्मल मलाहारी ।
शरण-सहस्य-प्रदायिनी,
सब विधि सुखकारी॥
॥ जय भगवद गीता...॥

राग-द्वेष-विदारिणी,
करिणी मोद सदा ।
भव-हय-हारिणी,
तारिणी परमानंदप्रदा ॥
॥ जय भगवद गीता...॥

आसुर-भव-विनाशिनी,
नाशिनी तम रजनी ।
दैवी सद् गुणादायिनी,
हरि-रसिका सजनी ॥
॥ जय भगवद गीता...॥

समता, त्याग सिखवाणी,
हरि-मुख की बानी ।
सकल शास्त्र की स्वामिनी,
श्रुतियों की रानी ॥
॥ जय भगवद गीता...॥

दया-सुधा बरसावणी,
मातु! कृपा कीजै ।
हरिपद-प्रेम दान कर,
अपणो कर लीजै॥
॥ जय भगवद गीता...॥

जय भगवद गीता ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणी,
सुन्दर सुपुनीते ।

निष्कर्ष:

श्री भगवद्गीता की आरती भगवद्गीता में निहित कालातीत ज्ञान की मार्मिक याद दिलाती है।

मधुर भजनों और हार्दिक भक्ति के माध्यम से भक्त इस पवित्र ग्रंथ के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं तथा आध्यात्मिक विकास और ज्ञानोदय के लिए दिव्य आशीर्वाद मांगते हैं।

जैसे ही हम आरती के दिव्य स्पंदनों में डूबते हैं, हम अपने जीवन में भगवद् गीता की शिक्षाओं को अपनाने तथा धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित हों।

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