भारतीय संस्कृति और धर्म में ऋण, चाहे वह आर्थिक हो, मानसिक हो, या आध्यात्मिक हो, मनुष्य के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्राचीन ग्रंथों और शास्त्रों में ऋण को एक बड़ी समस्या के रूप में देखा गया है, जो न केवल व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है, बल्कि उसके मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालता है।
ऋण से मुक्ति पाने के लिए हमारे शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण उपाय है 'ऋण मोचक मङ्गल स्तोत्रम्' का पाठ।
ऋण मोचक मङ्गल स्तोत्रम् एक पवित्र मंत्र है जिसे भगवान हनुमान को समर्पित किया गया है। हनुमान जी को संकटमोचक और भक्तों के कष्टों का निवारण करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है।
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को न केवल आर्थिक ऋण से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन के अन्य संकटों से भी छुटकारा मिलता है। इस स्तोत्र का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसे स्वयं महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित माना जाता है, जो हमारे प्राचीन ग्रंथों के महान लेखक थे।
ऋण मोचक मङ्गल स्तोत्रम् का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह स्तोत्र भगवान हनुमान की महिमा का वर्णन करता है और उनकी कृपा से सभी प्रकार के ऋण और संकटों से मुक्ति दिलाता है।
इसके पाठ से मानसिक शांति, आत्मविश्वास और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
श्री मङ्गलाय नमः ॥
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1॥
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2॥
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3॥
एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् ।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥4॥
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥5॥
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः ।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् ॥6॥
अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल ।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥7॥
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः ।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥8॥
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः ।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात् ॥9॥
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा ।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥10॥
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः ।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥11॥
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् ।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥12॥
॥ इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
निष्कर्ष
ऋण मोचक मङ्गल स्तोत्रम् के महत्व को समझना और इसे जीवन में अपनाना अत्यंत आवश्यक है। आज के युग में जहां आर्थिक संकट, मानसिक तनाव और जीवन की अनेक समस्याएं हमारे जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं, वहां इस पवित्र मंत्र का पाठ एक संजीवनी बूटी के समान है।
यह न केवल हमारे आर्थिक ऋण को समाप्त करने में सहायक है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति भी प्रदान करता है।
भगवान हनुमान की कृपा से हमें अपने जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। उनके प्रति सच्ची श्रद्धा और विश्वास के साथ इस स्तोत्र का पाठ करने से हमें निश्चित रूप से लाभ होता है। यह हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है और हमें आत्मविश्वास से भर देता है।
ऋण मोचक मङ्गल स्तोत्रम् के नियमित पाठ से व्यक्ति अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकता है और भगवान हनुमान की अनंत कृपा का अनुभव कर सकता है।
इस प्रकार, ऋण मोचक मङ्गल स्तोत्रम् हमारे जीवन को समृद्ध और सफल बनाने का एक महत्वपूर्ण साधन है। हमें इसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए और भगवान हनुमान की कृपा से अपने जीवन को संकटों से मुक्त करना चाहिए।