Varuthini Ekadashi Vrat Katha(वरुथिनी एकादशी व्रत कथा)

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा एक प्रमुख हिंदू व्रत है, जो भगवान विष्णु की पूजा और अर्चना का अवसर है। यह व्रत हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है।

इस व्रत को विशेष रूप से प्रदक्षिणा, भजन और पारायण के साथ मनाया जाता है, जिससे व्रती भक्त भगवान के आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं। वरुथिनी एकादशी को मान्यता है कि इस दिन व्रती अपने पापों से मुक्त होते हैं और भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं।

इस व्रत की कथा में एक प्राचीन कथा है, जिसमें एक राजा ने अपने धर्मपत्नी की आज्ञा का उल्लंघन किया और उसके प्रतिफलस्वरूप वह पराधीनता में फंस गया। फिर भगवान विष्णु की कृपा से वह राजा उसे मुक्ति प्राप्त करता है, जो वरुथिनी एकादशी के व्रत का पालन करके हुआ।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर बोले: हे भगवन्! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आपने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात कामदा एकादशी के बारे मे विस्तार पूर्वक बतलाया। अब आप कृपा करके वैशाख कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि एवं महात्म्य क्या है?
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे राजेश्वर! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है। इसकी महात्म्य कथा आपसे कहता हूँ..

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा!
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करते थे। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी थे। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी न जाने कहाँ से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहे। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया।

राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला।

राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुए। उन्हें दुःखी देखकर भगवान विष्णु बोले: हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।

भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गये थे।

जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है।

निष्कर्ष:

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा एक गहरी सन्देश संदेशती है कि धार्मिकता और भक्ति के माध्यम से ही हम सच्चे धर्म का पालन कर सकते हैं और अपने पापों से मुक्त हो सकते हैं। इस व्रत के माध्यम से हम अपने मन, वाणी और कर्म को पवित्र बनाते हैं और भगवान की कृपा को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

वरुथिनी एकादशी के पावन पर्व को मानकर हम अपने आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं और भगवान के आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं। इसे मनाकर हम धार्मिकता और संयम के माध्यम से अपने जीवन को सफल बनाने का संकल्प लेते हैं।

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