Sita Navmi Pauranik Katha(सीता अवतरण पौराणिक कथा) in Hindi

सीता नवमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जो माता सीता के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आता है। सीता नवमी का उत्सव मुख्य रूप से उत्तर भारत में विशेष धूमधाम से मनाया जाता है।

माता सीता का जन्म मिथिला में राजा जनक के घर हुआ था, और उन्हें पृथ्वी से प्रकट होने के कारण 'जानकी' भी कहा जाता है। इस दिन को माता सीता की पौराणिक कथा और उनके जीवन की अद्भुत घटनाओं को याद करने और उनकी पूजा-अर्चना करने के लिए मनाया जाता है।

सीता नवमी के अवसर पर भक्तजन उपवास रखते हैं, माता सीता और भगवान राम की मूर्तियों की पूजा करते हैं, और धार्मिक कथाओं का पाठ करते हैं।

माता सीता की पौराणिक कथा अत्यंत प्रेरणादायक और श्रद्धा से भरी हुई है। उनके जन्म से लेकर भगवान राम के साथ उनके विवाह, वनवास, और अंत में लंका से उनकी मुक्ति तक की पूरी कथा मानवता के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करती है।

माता सीता को त्याग, धैर्य, और नारी शक्ति का प्रतीक माना जाता है। उनके जीवन की घटनाओं से हमें सच्चे प्रेम, समर्पण, और साहस का पाठ मिलता है।

सीता अवतरण पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र में एक वेदवादी श्रेष्ठ धर्मधुरीण ब्राह्मण निवास करते थे। उनका नाम देवदत्त था। उन ब्राह्मण की बड़ी सुंदर रूपगर्विता पत्नी थी, उसका नाम शोभना था। ब्राह्मण देवता जीविका के लिए अपने ग्राम से अन्य किसी ग्राम में भिक्षाटन के लिए गए हुए थे। इधर ब्राह्मणी कुसंगत में फंसकर व्यभिचार में प्रवृत्त हो गई।
अब तो पूरे गांव में उसके इस निंदित कर्म की चर्चाएं होने लगीं। परंतु उस दुष्टा ने गांव ही जलवा दिया। दुष्कर्मों में रत रहने वाली वह दुर्बुद्धि मरी तो उसका अगला जन्म चांडाल के घर में हुआ। पति का त्याग करने से वह चांडालिनी बनी, ग्राम जलाने से उसे भीषण कुष्ठ हो गया तथा व्यभिचार-कर्म के कारण वह अंधी भी हो गई। अपने कर्म का फल उसे भोगना ही था।

इस प्रकार वह अपने कर्म के योग से दिनों दिन दारुण दुख प्राप्त करती हुई देश-देशांतर में भटकने लगी। एक बार दैवयोग से वह भटकती हुई कौशलपुरी पहुंच गई। संयोगवश उस दिन वैशाख मास, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी, जो समस्त पापों का नाश करने में समर्थ है।

सीता (जानकी) नवमी के पावन उत्सव पर भूख-प्यास से व्याकुल वह दुखियारी इस प्रकार प्रार्थना करने लगी- हे सज्जनों! मुझ पर कृपा कर कुछ भोजन सामग्री प्रदान करो। मैं भूख से मर रही हूं- ऐसा कहती हुई वह स्त्री श्री कनक भवन के सामने बने एक हजार पुष्प मंडित स्तंभों से गुजरती हुई उसमें प्रविष्ट हुई। उसने पुनः पुकार लगाई- भैया! कोई तो मेरी मदद करो- कुछ भोजन दे दो।

इतने में एक भक्त ने उससे कहा- देवी! आज तो सीता नवमी है, भोजन में अन्न देने वाले को पाप लगता है, इसीलिए आज तो अन्न नहीं मिलेगा। कल पारणा करने के समय आना, ठाकुर जी का प्रसाद भरपेट मिलेगा, किंतु वह नहीं मानी। अधिक कहने पर भक्त ने उसे तुलसी एवं जल प्रदान किया। वह पापिनी भूख से मर गई। किंतु इसी बहाने अनजाने में उससे सीता नवमी का व्रत पूरा हो गया।

अब तो परम कृपालिनी ने उसे समस्त पापों से मुक्त कर दिया। इस व्रत के प्रभाव से वह पापिनी निर्मल होकर स्वर्ग में आनंदपूर्वक अनंत वर्षों तक रही। तत्पश्चात् वह कामरूप देश के महाराज जयसिंह की महारानी काम कला के नाम से विख्यात हुई। जातिस्मरा उस महान साध्वी ने अपने राज्य में अनेक देवालय बनवाए, जिनमें जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई।

अत: सीता नवमी पर जो श्रद्धालु माता जानकी का पूजन-अर्चन करते है, उन्हें सभी प्रकार के सुख-सौभाग्य प्राप्त होते हैं। इस दिन जानकी स्तोत्र, रामचंद्रष्टाकम्, रामचरित मानस आदि का पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं

निष्कर्ष

सीता नवमी का पर्व हमें माता सीता के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने का अवसर प्रदान करता है। यह हमें याद दिलाता है कि कैसे उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्यों का पालन किया और अपने आदर्शों से कभी समझौता नहीं किया। उनकी कहानी सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं रखती, बल्कि यह हमें सिखाती है कि कैसे हम अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकते हैं और सच्चे मार्ग पर चल सकते हैं।

माता सीता का जीवन हमें यह भी बताता है कि सच्ची शक्ति आंतरिक होती है, जो धैर्य, प्रेम और समर्प

ण में निहित होती है। सीता नवमी का पर्व हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में माता सीता के आदर्शों को अपनाएं और कठिनाइयों के समय में भी धैर्य और साहस बनाए रखें।

माता सीता का त्याग और बलिदान हमें यह सिखाता है कि जीवन में सच्चे प्रेम और समर्पण का महत्व कितना बड़ा है। उनकी पवित्रता और निष्ठा हमें यह संदेश देती है कि सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने से ही जीवन में सच्ची श

ांति और संतोष प्राप्त होता है।

सीता नवमी का उत्सव केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे भीतर की सच्ची नारी शक्ति और सद्गुणों को पहचानने और उन्हें सशक्त करने का अवसर भी है। इस दिन हमें माता सीता के आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए, ताकि हम भी समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकें और अपने जीवन को उनके जैसे उच्चतम आदर्शों के साथ जी सकें।

अतः, सीता नवमी का पर्व हमें केवल पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठानों का ही नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण और आत्मसुधार का भी अवसर प्रदान करता है। माता सीता की पौराणिक कथा से प्रेरणा लेकर हम अपने जीवन को अधिक सार्थक और सशक्त बना सकते हैं। सीता नवमी का यह पर्व हमें जीवन में सच्चे मूल्यों की स्थापना करने और हर परिस्थिति में धैर्य और साहस बनाए रखने की प्रेरणा देता है।

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