Ravi Pradosh Vrat Katha(रवि प्रदोष व्रत कथा)

रवि प्रदोष व्रत कथा एक प्रसिद्ध हिंदू व्रत है जो भगवान शिव की पूजा और अर्चना का अवसर है। यह व्रत हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है।

यह विशेष रूप से सूर्यास्त के समय को शिव की पूजा के लिए उत्तम माना जाता है, जिससे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। रवि प्रदोष व्रत के पालन से धर्म, भक्ति और आत्मशुद्धि की प्राप्ति होती है।

इस व्रत की कथा में भगवान शिव के भक्त रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी का उल्लेख है। यह कथा बताती है कि कैसे रावण ने भगवान शिव की पूजा की और उनके व्रत का पालन किया, जिससे उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

रवि प्रदोष व्रत कथा

एक ग्राम में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी। उसे एक ही पुत्ररत्न था। एक समय की बात है, वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिए गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे नहीं, तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बतला दो।

बालक दीनभाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं। हमारे पास धन कहाँ है?
तब चोरों ने कहा कि तेरे इस पोटली में क्या बंधा है?
बालक ने नि:संकोच कहा कि मेरी माँ ने मेरे लिए रोटियां दी हैं।

यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों! यह बहुत ही दीन-दु:खी मनुष्य है अत: हम किसी और को लूटेंगे। इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया।

बालक वहाँ से चलते हुए एक नगर में पहुंचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया। उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुंचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गए। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया।

ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिंता हुई। अगले दिन प्रदोष व्रत था। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र की कुशलता की प्रार्थना करने लगी।

भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा तुम्हारा सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जाएगा।

प्रात:काल राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया गया। बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई।

सारा वृत्तांत सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राजदरबार में बुलाया। उसके माता-पिता बहुत ही भयभीत थे। राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा कि आप भयभीत न हो। आपका बालक निर्दोष है। राजा ने ब्राह्मण को 5 गांव दान में दिए जिससे कि वे सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें। इस तरह ब्राह्मण आनन्द से रहने लगा। शिव जी की दया से उसकी दरिद्रता दूर हो गई।

अत: जो भी मनुष्य रवि प्रदोष व्रत को करता है, वह सुखपूर्वक और निरोगी होकर अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है।

निष्कर्ष:

रवि प्रदोष व्रत कथा एक महत्वपूर्ण सन्देश संदेशती है कि सच्चे भक्ति और निष्काम भक्ति से ही परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत हमें ध्यान, धार्मिकता और समर्पण की ओर आग्रह करता है।

इसके माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि समस्त संग्रहणों के बावजूद जीवन में निष्काम भक्ति का अपनाना ही असली सुख और आनंद की प्राप्ति है।

इस व्रत को मानने से हम अपने आत्मा को पवित्र करते हैं और अपने जीवन को भगवान के मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं। इस पर्व के त्योहार के माध्यम से हम अपनी आत्मिक ऊर्जा को बढ़ाते हैं और भगवान शिव के आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं।

 

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