Paush Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha(पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा) in Hindi

पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है, जिसे विशेष रूप से भगवान गणेश की उपासना के लिए रखा जाता है।

यह व्रत हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन पौष महीने की संकष्टी गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व होता है। भगवान गणेश, जिन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि, समृद्धि एवं सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है, उनके आशीर्वाद से भक्त सभी प्रकार की बाधाओं और कष्टों से मुक्त होते हैं।

इस व्रत की शुरुआत प्रातः काल सूर्योदय से होती है और दिनभर उपवास रखने के पश्चात रात को चंद्रमा के दर्शन और पूजा के बाद व्रत का पारण किया जाता है।

इस दिन भक्त गणेश जी की मूर्ति के समक्ष दीपक जलाते हैं, मिठाई और मोदक का भोग लगाते हैं और विशेष रूप से "संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा" का पाठ करते हैं। इस कथा में भगवान गणेश की महिमा और उनके चमत्कारी कृत्यों का वर्णन होता है, जो यह दर्शाता है कि कैसे उन्होंने अपने भक्तों के कष्टों को दूर किया और उन्हें सुख, शांति और समृद्धि का वरदान दिया।

पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा

पौष मास में चतुर्थी का व्रत कर रहे व्रतधारियों को दोनों हाथों में पुष्प लेकर श्री गणेश जी का ध्यान तथा पूजन करने के पश्चात पौष गणेश चतुर्थी की यह कथा अवश्य ही पढ़ना अथवा सुनना चाहिए। संकष्टी गणेश चतुर्थी के दिन श्री गणेश के दर्शन और व्रत करने का बहुत महत्व है।
पौष गणेश चौथ व्रत कथा के अनुसार एक समय रावण ने स्वर्ग के सभी देवताओं को जीत लिया व संध्या करते हुए बाली को पीछे से जाकर पकड़ लिया। वानरराज बाली, रावण को अपनी बगल में दबाकर किष्किन्धा नगरी ले आए और अपने पुत्र अंगद को खेलने के लिए खिलौना की तरह दे दिया।

अंगद, रावण को खिलौना समझकर रस्सी से बांधकर इधर-उधर घुमाते रहते थे। इससे रावण को बहुत कष्ट और दु:ख होता था। एक दिन रावण ने दु:खी मन से अपने पितामह पुलस्त्यजी को याद किया। रावण की यह दशा देखकर पुलस्त्य ऋषि ने विचारा कि रावण की यह दशा क्यों हुई? उन्होंने मन ही मन सोचा अभिमान हो जाने पर देव, मनुष्य व असुर सभी की यही गति होती है।

पुलस्त्य ऋषि ने रावण से पूछा कि तुमने मुझे क्यों याद किया है?
रावण बोला - पितामह, मैं बहुत दु:खी हूँ। ये नगरवासी मुझे धिक्कारते हैं और अब ही आप मेरी रक्षा करें।

रावण की बात सुनकर पुलस्त्यजी बोले - रावण, तुम डरो नहीं, तुम इस बंधन से जल्द ही मुक्त हो जाओगे। तुम विघ्नविनाशक श्री गणेशजी का व्रत करो। पूर्व काल में वृत्रासुर की हत्या से छुटकारा पाने के लिए इन्द्रदेव ने भी इस व्रत को किया था, इसलिए तुम भी विघ्नविनाशक श्री गणेशजी के इस व्रत को अवश्य करो।

तब पिता की आज्ञानुसार रावण ने भक्तिपूर्वक इस व्रत को किया और बंधनरहित हो अपने राज्य को पुन: प्राप्त किया। मान्यतानुसार जो भी श्री गणेश भक्त पौष मास की संकष्टी चतुर्थी पर इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करते हैं, उन्हें सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है।

समापन:

पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से है, बल्कि यह व्रत आत्मिक शुद्धि, धैर्य, और अनुशासन को भी प्रोत्साहित करता है। इस व्रत को करने से भक्तों को मानसिक और शारीरिक लाभ भी प्राप्त होते हैं। भगवान गणेश की कृपा से व्रतधारियों के जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं और उन्हें अपने कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

व्रत कथा का पाठ और गणेश जी की आराधना करने से भक्तों को यह एहसास होता है कि जीवन में आने वाली हर चुनौती का सामना धैर्य, संयम और भगवान के प्रति अटूट विश्वास के साथ करना चाहिए। इस व्रत का उद्देश्य केवल कठिनाइयों को दूर करना नहीं है, बल्कि जीवन में सकारात्मकता, शांति और समृद्धि को भी आमंत्रित करना है।

संक्षेप में, पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत भगवान गणेश के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इस व्रत को सच्चे मन से करने वाले भक्तों को न केवल भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है, बल्कि उन्हें आत्मिक शांति और समृद्धि भी मिलती है।

इसलिए, इस पावन व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए और भगवान गणेश से अपने जीवन की सभी कठिनाइयों और बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करनी चाहिए।

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