Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 25(कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 25)

कार्तिक मास का महत्व भारतीय संस्कृति में अत्यधिक है। इसे धर्म, पुण्य और भक्ति का महीना माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह माह दीपावली, अन्नकूट, गोवर्धन पूजा और तुलसी विवाह जैसे कई महत्वपूर्ण त्योहारों से भरा हुआ होता है। इस माह में किए गए धार्मिक कार्यों का विशेष महत्व होता है और भगवान विष्णु की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।

अध्याय 25 की कथा का वर्णन करते हुए, इस पवित्र माह के अनेक धार्मिक और पौराणिक संदर्भों को उकेरा गया है। इस अध्याय में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, विधियों और उनके फल के बारे में विस्तार से बताया गया है। यह कथा भक्तों को धर्म और पुण्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है, और उन्हें जीवन में सच्चे अर्थों में सफलता प्राप्त करने की दिशा दिखाती है।

इस अध्याय के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि कार्तिक मास में किए गए दान, व्रत, उपवास और पूजा का कितना महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और श्रद्धा का यह समय असीमित पुण्य प्रदान करता है और जीवन के सभी दुखों और समस्याओं से छुटकारा दिलाता है। इस कथा में बताए गए धार्मिक अनुष्ठानों और व्रतों का पालन करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 25

(धर्मदत्त जी का कथन, चौबीसवीं कथा का आगे वर्णन सुनिए)..
तीर्थ में दान और व्रत आदि सत्कर्म करने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं परन्तु तू तो प्रेत के शरीर में है, अत: उन कर्मों को करने की अधिकारिणी नहीं है। इसलिए मैंने जन्म से लेकर अब तक जो कार्तिक का व्रत किया है उसके पुण्य का आधा भाग मैं तुझे देता हूँ, तू उसी से सदगति को प्राप्त हो जा।

इस प्रकार कहकर धर्मदत्त ने द्वादशाक्षर मन्त्र का श्रवण कराते हुए तुलसी मिश्रित जल से ज्यों ही उसका अभिषेक किया त्यों ही वह प्रेत योनि से मुक्त हो प्रज्वलित अग्निशिखा के समान तेजस्विनी एवं दिव्य रूप धारिणी देवी हो गई और सौन्दर्य में लक्ष्मी जी की समानता करने लगी।

तदन्तर उसने भूमि पर दण्ड की भाँति गिरकर ब्राह्मण देवता को प्रणाम किया और हर्षित होकर गदगद वाणी में कहा- हे द्विजश्रेष्ठ! आपके प्रसाद से आज मैं इस नरक से छुटकारा पा गई। मैं तो पाप के समुद्र में डूब रही थी और आप मेरे लिए नौका के समान हो गये।

वह इस प्रकार ब्राह्मण से कह रही थी कि आकाश से एक दिव्य विमान उतरता दिखाई दिया। वह अत्यन्त प्रकाशमान एवं विष्णुरूपधारी पार्षदों से युक्त था। विमान के द्वार पर खड़े हुए पुण्यशील और सुशील ने उस देवी को उठाकर श्रेष्ठ विमान पर चढ़ा लिया तब धर्मदत्त ने बड़े आश्चर्य के साथ उस विमान को देखा और विष्णुरुपधारी पार्षदों को देखकर साष्टांग प्रणाम किया।

पुण्यशील और सुशील ने प्रणाम करने वाले ब्राह्मण को उठाया और उसकी सराहना करते हुए कहा- हे द्विजश्रेष्ठ! तुम्हें साधुवाद है, क्योंकि तुम सदैव भगवान विष्णु के भजन में तत्पर रहते हो, दीनों पर दया करते हो, सर्वज्ञ हो तथा भगवान विष्णु के व्रत का पालन करते हो। तुमने बचपन से लेकर अब तक जो कार्तिक व्रत का अनुष्ठान किया है, उसके आधे भाग का दान देने से तुम्हें दूना पुण्य प्राप्त हुआ है और सैकड़ो जन्मों के पाप नष्ट हो गये हैं। अब यह वैकुण्ठधाम में ले जाई जा रही है। तुम भी इस जन्म के अन्त में अपनी दोनों स्त्रियों के साथ भगवान विष्णु के वैकुण्ठधाम में जाओगे और मुक्ति प्राप्त करोगे।

धर्मदत्त! जिन्होंने तुम्हारे समान भक्तिपूर्वक भगवान विष्णु की आराधना की है वे धन्य और कृतकृत्य हैं। इस संसार में उन्हीं का जन्म सफल है। भली-भांति आराधना करने पर भगवान विष्णु देहधारी प्राणियों को क्या नहीं देते हैं? उन्होंने ही उत्तानपाद के पुत्र को पूर्वकाल में ध्रुवपद पर स्थापित किया था।

उनके नामों का स्मरण करने मात्र से समस्त जीव सदगति को प्राप्त होते हैं। पूर्वकाल में ग्राहग्रस्त गजराज उन्हीं के नामों का स्मरण करने से मुक्त हुआ था। तुमने जन्म से लेकर जो भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करने वाले कार्तिक व्रत का अनुष्ठान किया है, उससे बढ़कर न यज्ञ है, न दान और न ही तीर्थ है। विप्रवर! तुम धन्य हो क्योंकि तुमने जगद्गुरु भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला कार्तिक व्रत किया है, जिसके आधे भाग के फल को पाकर यह स्त्री हमारे साथ भगवान लोक में जा रही है।

निष्कर्ष

कार्तिक मास माहात्म्य कथा का अध्याय 25 यह संदेश देता है कि भक्ति, पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों का जीवन में कितना महत्व है। इस माह में किए गए हर छोटे से छोटे पुण्य कर्म का भी अनंत फल मिलता है। अध्याय 25 की कथा से यह स्पष्ट होता है कि भगवान विष्णु की आराधना और उनके प्रति अटूट श्रद्धा रखने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

इस पवित्र माह में की गई साधना और तपस्या व्यक्ति को उसके जीवन के सभी कष्टों से मुक्त कर देती है और उसे मोक्ष का मार्ग दिखाती है। इस कथा का महत्व समझते हुए, हमें कार्तिक मास में अधिक से अधिक धार्मिक कार्यों में संलग्न होना चाहिए और भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहकर अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए।

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