Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 20(कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 20)

भारतीय संस्कृति और धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। यह महीना पवित्रता, भक्ति, और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध है। कार्तिक मास में की जाने वाली पूजा-अर्चना और व्रत का वर्णन पुराणों में व्यापक रूप से किया गया है।

विशेषकर, कार्तिक मास माहात्म्य कथा में इस महीने की महिमा और इसमें किए जाने वाले कृत्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है। यह कथा भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और पुण्य प्राप्ति का मार्ग दिखाती है।

अध्याय 20 में, इस कथा का विशेष महत्व और विशिष्ट घटनाओं का उल्लेख किया गया है। इस अध्याय में न केवल धार्मिक अनुष्ठानों की महिमा का वर्णन है, बल्कि इसमें दिए गए कथानक के माध्यम से यह बताया गया है कि कैसे भक्ति और धर्म के पालन से जीवन में संतुलन और समृद्धि लाई जा सकती है।

इस अध्याय के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि कार्तिक मास में भगवान की आराधना और सेवा का कितना महत्व है और यह कैसे जीवन को परिवर्तित कर सकता है।

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 20

माँ शारदा की प्रेरणा,
स्वयं सहाय ।
कार्तिक माहात्म का लिखूं,
यह बीसवाँ अध्याय ॥
अब राजा पृथु ने पूछा - हे देवर्षि नारद! इसके बाद युद्ध में क्या हुआ तथा वह दैत्य जलन्धर किस प्रकार मारा गया, कृपया मुझे वह कथा सुनाइए। नारद जी बोले – जब गिरिजा वहां से अदृश्य हो गईं और गन्धर्वी माया भी विलीन हो गई तब भगवान वृषभध्वज चैतन्य हो गये। उन्होंने लौकिकता व्यक्त करते हुए बड़ा क्रोध किया और विस्मितमना जलन्धर से युद्ध करने लगे। जलन्धर शंकर के बाणों को काटने लगा परन्तु जब काट न सका तब उसने उन्हें मोहित करने के लिए माया की पार्वती का निर्माण कर अपने रथ पर बाँध लिया तब अपनी प्रिया पार्वती को इस प्रकार कष्ट में पड़ा देख लौकिक-लीला दिखाते हुए शंकर जी व्याकुल हो गये।

शंकर जी ने भयंकर रौद्र रूप धारण कर लिया। अब उनके रौद्र रूप को देख कोई भी दैत्य उनके सामने खड़ा होने में समर्थ न हो सका और सब भागने-छिपने लगे। यहाँ तक कि शुम्भ-निशुम्भ भी समर्थ न हो सके। शिवजी ने उन शुम्भ-निशुम्भ को शाप देकर बड़ा धिक्कारा और कहा – तुम दोनो ने मेरा बड़ा अपराध किया है। तुम युद्ध से भागते हो, भागते को मारना पाप है। इससे मैं तुम्हें अब नहीं मारूंगा परन्तु गौरी तुमको अवश्य मारेगी।

शिवजी के ऎसा कहने पर सागर पुत्र जलन्धर क्रोध से अग्नि के समान प्रज्वलित हो उठा। उसने शिवजी पर घोर बाण बरसाकर धरती पर अन्धकार कर दिया तब उस दैत्य की ऎसी चेष्टा देखकर शंकर जी बड़े क्रोधित हुए तथा उन्होंने अपने चरणांगुष्ठ से बनाये हुए सुदर्शन चक्र को चलाकर उसका सिर काट लिया। एक प्रचण्ड शब्द के साथ उसका सिर पृथ्वी पर गिर पड़ा और अंजन पर्वत के समान उसके शरीर के दो खण्ड हो गये। उसके रुधिर से संग्राम-भूमि व्याप्त हो गई।

शिवाज्ञा से उसका रक्त और मांस महारौरव में जाकर रक्त का कुण्ड हो गया तथा उसके शरीर का तेज निकलकर शंकर जी में वैसे ही प्रवेश कर गया जैसे वृन्दा का तेज गौरी के शरीर में प्रविष्ट हुआ था। जलन्धर को मरा देख देवता और सब गन्धर्व प्रसन्न हो गये। माँ शारदा की प्रेरणा, स्वयं सहाय।

निष्कर्ष

कार्तिक मास माहात्म्य कथा का अध्याय 20 हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं से अवगत कराता है। इस अध्याय के माध्यम से हम यह समझ पाते हैं कि धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-अर्चना केवल व्यक्तिगत कल्याण के लिए नहीं होते, बल्कि वे समाज के सामूहिक कल्याण का भी मार्ग प्रशस्त करते हैं।

यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया हर कार्य फलदायी होता है और उससे न केवल हमारी आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि हमारे समस्त कर्मों का भी शोधन होता है।

इस अध्याय में वर्णित कथा और उपदेश यह भी बताते हैं कि कैसे कार्तिक मास में भगवान की भक्ति और सेवा करने से हमें अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है। यह अध्याय हमें धार्मिकता, सत्य, और भक्ति के महत्व का बोध कराता है और हमें यह प्रेरणा देता है कि हम अपने जीवन में इन मूल्यों को अपनाकर अपनी आध्यात्मिक यात्रा को सफल बना सकते हैं।

कार्तिक मास माहात्म्य कथा का यह अध्याय हर पाठक के लिए एक प्रेरणादायक संदेश है, जो हमें धार्मिकता, सेवा, और भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। यह हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और धार्मिकता से ही जीवन में वास्तविक सुख और शांति प्राप्त की जा सकती है।

अध्याय 20 का यह ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक वर्णन हमें यह समझने में मदद करता है कि कैसे भगवान की आराधना और धर्म के पालन से हम अपने जीवन को समृद्ध और संतुलित बना सकते हैं।

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