Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 19(कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 19)

हिंदू धर्म में कार्तिक मास को अत्यधिक पवित्र और महत्वपू्र्ण माना जाता है। यह मास धार्मिक अनुष्ठानों, तपस्या और भक्ति के लिए प्रसिद्ध है। विशेषकर भगवान विष्णु और भगवान शिव की उपासना का यह माह है। इस मास में की गई पूजा, व्रत और दान का विशेष फल मिलता है।

पुराणों में कार्तिक मास की महिमा का विस्तृत वर्णन मिलता है, जिसमें विशेषकर 'कार्तिक मास माहात्म्य' का महत्वपूर्ण स्थान है। कार्तिक मास माहात्म्य की कथाएँ धार्मिक अनुयायियों को प्रेरित करती हैं और जीवन में धर्म, भक्ति और पुण्य के महत्व को बताती हैं।

'कार्तिक मास माहात्म्य' के अध्याय 19 में एक महत्वपूर्ण कथा का वर्णन है जो धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इस कथा में धर्म और भक्ति की महानता का उल्लेख मिलता है, साथ ही यह भी बताया गया है कि कार्तिक मास में किस प्रकार के अनुष्ठान और पूजा करने से व्यक्ति को विशेष फल प्राप्त होते हैं। इस अध्याय में पवित्रता, सत्य और धार्मिक कर्तव्यों के महत्व पर जोर दिया गया है।

अध्याय 19 की कथा में एक राजा की कहानी है जो धर्म और भक्ति में गहरी रुचि रखते थे। उनके शासन में प्रजा सुखी और समृद्ध थी। राजा ने कार्तिक मास में विशेष पूजा और व्रत का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने प्रजा को भी भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

इस पूजा और व्रत के माध्यम से राजा ने भगवान विष्णु और भगवान शिव की कृपा प्राप्त की। कथा में यह भी बताया गया है कि कैसे इस पूजा से राजा और उनकी प्रजा को अत्यधिक पुण्य प्राप्त हुआ और उनके जीवन में सुख-समृद्धि का वास हुआ।

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 19

श्री विष्णु मम् हृदय में,
प्रेरणा करने वाले नाथ ।
लिखूँ माहात्म कार्तिक,
राखो सिर पर हाथ ॥
राजा पृथु ने पूछा - हे नारद जी! अब आप यह कहिए कि भगवान विष्णु ने वहाँ जाकर क्या किया तथा जलन्धर की पत्नी का पतिव्रत किस प्रकार भ्रष्ट हुआ?

नारद जी बोले - जलन्धर के नगर में जाकर विष्णु जी ने उसकी पतिव्रता स्त्री वृन्दा का पतिव्रत भंग करने का विचार किया। वे उसके नगर के उद्यान में जाकर ठहर गये और रात में उसको स्वप्न दिया।

वह भगवान विष्णु की माया और विचित्र कार्यपद्धति थी और उसकी माया द्वारा जब वृन्दा ने रात में वह स्वप्न देखा कि उसका पति नग्न होकर सिर पर तेल लगाये महिष पर चढ़ा है। वह काले रंग के फूलों की माला पहने हुए है तथा उसके चारों हिंसक जीव हैं। वह सिर मुड़ाए हुए अन्धकार में दक्षिण दिशा की ओर जा रहा है। उसने नगर को अपने साथ समुद्र में डूबा हुआ इत्यादि बहुत से स्वप्न देखे। तत्काल ही वह स्वप्न का विचार करने लगी। इतने में उसने सूर्यदेव को उदय होते हुए देखा तो सूर्य में उसे एक छिद्र दिखाई दिया तथा वह कान्तिहीन था।

इसे उसने अनिष्ट जाना और वह भयभीत हो रोती हुई छज्जे, अटारी तथा भूमि कहीं भी शान्ति को प्राप्त न हुई फिर अपनी दो सखियों के साथ उपवन में गई वहाँ भी उसे शान्ति नहीं मिली। फिर वह जंगल में में निकल गई वहाँ उसने सिंह के समान दो भयंकर राक्षसों को देखा, जिससे वह भयभीत हो भागने लगी। उसी क्षण उसके समक्ष अपने शिष्यों सहित शान्त मौनी तपस्वी वहाँ आ गया। भयभीत वृन्द उसके गले में अपना हाथ डाल उससे रक्षा की याचना करने लगी। मुनि ने अपनी एक ही हुंकार से उन राक्षसों को भगा दिया।

वृन्दा को आश्चर्य हुआ तथा वह भय से मुक्त हो मुनिनाथ को हाथ जोड़ प्रणाम करने लगी। फिर उसने मुनि से अपने पति के संबंध में उसकी कुशल क्षेम का प्रश्न किया। उसी समय दो वानर मुनि के समक्ष आकर हाथ जोड़ खड़े हो गये और ज्योंही मुनि ने भृकुटि संकेत किया त्योंही वे उड़कर आकाश मार्ग से चले गये। फिर जलन्धर का सिर और धड़ लिये मुनि के आगे आ गये तब अपने पति को मृत हुआ जान वृन्दा मूर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ी और अनेक प्रकार से दारुण विलाप करने लगी। पश्चात उस मुनि से कहा – हे कृपानिधे! आप मेरे इस पति को जीवित कर दीजिए। पतिव्रता दैत्य पत्नी ऎसा कहकर दुखी श्वासों को छोड़कर मुनीश्वर के चरणों पर गिर पड़ी।

तब मुनीश्वर ने कहा – यह शिवजी द्वारा युद्ध में मारा गया है, जीवित नहीं हो सकता क्योंकि जिसे भगवान शिव मार देते हैं वह कभी जीवित नहीं हो सकता परन्तु शरणागत की रक्षा करना सनतन धर्म है, इसी कारण कृपाकर मैं इसे जिलाए देता हूँ।

नारद जी ने आगे कहा – वह मुनि साक्षात विष्णु ही थे जिन्होंने यह सब माया फैला रखी थी। वह वृन्दा के पति को जीवित कर के अन्तर्ध्यान हो गये। जलन्धर ने उठकर वृन्दा को आलिंगन किया और मुख चूमा। वृन्दा भी पति को जीवित हुआ देख अत्यन्त हर्षित हुई और अब तक हुई बातों को स्वप्न समझा। तत्पश्चात वृन्दा सकाम हो बहुत दिनों तक अपने पति के साथ विहार करती रही। एक बार सुरत एवं सम्भोग काल के अन्त में उन्हीं विष्णु को देखकर उन्हें ताड़ित करती हुई बोली – हे पराई स्त्री से गमन करने वाले विष्णु! तुम्हारे शील को धिक्कार है। मैंने जान लिया है कि मायावी तपस्वी तुम्हीं थे।

इस प्रकार कहकर कुपित पतिव्रता वृन्दा ने अपने तेज को प्रकट करते हुए भगवान विष्णु को शाप दिया – तुमने माया से दो राक्षस मुझे दिखाए थे वही दोनों राक्षस किसी समय तुम्हारी स्त्री ला हरण करेगें। सर्पेश्वर जो तुम्हारा शिष्य बना है, यह भी तुम्हारा साथी रहेगा जब तुम अपनी स्त्री के विरह में दुखी होकर विचरोगे उस समय वानर ही तुम्हारी सहायता करेगें।

ऎसा कहती हुई पतिव्रता वृन्दा अग्नि में प्रवेश कर गई। ब्रह्मा आदि देवता आकाश से उसका प्रवेश देखते रहे। वृन्दा के शरीर का तेज पार्वती जी के शरीर में चला गया। पतिव्रत के प्रभाव से वृन्दा ने मुक्ति प्राप्त की।

निष्कर्ष

कार्तिक मास माहात्म्य की कथाएँ हमें जीवन के धार्मिक और आध्यात्मिक पक्ष की ओर प्रेरित करती हैं। अध्याय 19 की कथा यह सिखाती है कि धर्म, भक्ति और सत्य का पालन करने से जीवन में अद्भुत परिवर्तन आ सकते हैं। राजा की कथा यह दर्शाती है कि अगर व्यक्ति सच्चे मन से ईश्वर की उपासना करता है, तो उसे निश्चित ही उसका फल मिलता है।

इस अध्याय के माध्यम से हमें यह भी पता चलता है कि समाज और प्रजा की भलाई के लिए राजा का कर्तव्य कितना महत्वपूर्ण है। राजा ने अपनी प्रजा के साथ मिलकर जो पूजा और व्रत किया, उससे न केवल उनका व्यक्तिगत लाभ हुआ बल्कि पूरे राज्य की समृद्धि भी बढ़ी। यह कथा हमें यह संदेश देती है कि सामूहिक प्रयास और समर्पण से समाज में सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं।

धर्म और भक्ति के माध्यम से व्यक्ति न केवल अपने जीवन को सुधार सकता है, बल्कि समाज में भी शांति और सद्भावना का संचार कर सकता है। कार्तिक मास माहात्म्य की यह कथा हमें जीवन में धार्मिक अनुष्ठानों और सत्य के महत्व को समझने में मदद करती है। कार्तिक मास के व्रत और पूजा के माध्यम से व्यक्ति अपने पापों का नाश कर सकता है और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।

अंत में, यह कहा जा सकता है कि 'कार्तिक मास माहात्म्य' की कथाएँ हमें धार्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं और जीवन में शांति, समृद्धि और संतोष का मार्ग दिखाती हैं।

अध्याय 19 की कथा न केवल एक प्रेरणादायक कहानी है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में धर्म और भक्ति के महत्व को भी रेखांकित करती है। इस प्रकार, कार्तिक मास में किए गए अनुष्ठान और पूजा हमारे जीवन को सही दिशा में ले जाते हैं और हमें आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करते हैं।

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