Jyeshtha Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha(ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा) in Hindi

ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। विशेष रूप से ज्येष्ठ

माह की संकष्टी गणेश चतुर्थी का महत्व अधिक होता है क्योंकि इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। गणेश जी को विघ्नहर्ता और बुद्धि, ज्ञान, समृद्धि के देवता माना जाता है। इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं।

ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी के दिन भक्तगण प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और भगवान गणेश की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलित कर पूजा-अर्चना आरम्भ करते हैं।

इस दिन विशेष रूप से गणेश जी को दूर्वा, मोदक और लाल फूल अर्पित किए जाते हैं। साथ ही, गणेश जी की व्रत कथा सुनने का भी विशेष महत्व होता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।

ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा

सतयुग में सौ यज्ञ करने वाले एक पृथु नामक राजा हुए। उनके राज्यान्तर्गत दयादेव नामक एक ब्राह्मण रहते थे। वेदों में निष्णात उनके चार पुत्र थे। पिता ने अपने पुत्रों का विवाह गृहसूत्र के वैदिक विधान से कर दिया। उन चार बहूओं में बड़ी बहू अपनी सास से कहने लगी - हे सासुजी! मैं बचपन से ही संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करती आई हूँ। मैंने पितृगृह में भी इस शुभदायक व्रत को किया हैं। अतः हे कल्याणी! आप मुझे यहाँ व्रतानुष्ठान करने की अनुमति प्रदान करें।
पुत्रवधू की बात सुनकर उसके ससुर ने कहा - हे बहू! तुम सभी बहूओं में श्रेष्ठ और बड़ी हो। तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं है और न तुम भिक्षुणी हो। ऐसी स्तिथि में तुम किस लिए व्रत करना चाहती हो? हे सौभाग्यवती! अभी तुम्हारा समय उपभोग करने का हैं। ये गणेश जी कौन है? फिर तुम्हें करना ही क्या हैं?

कुछ समय पश्चात बड़ी बहू गर्भिणी हो गई। दस मास बाद उसने सुन्दर बालक का प्रसव किया। उसकी सास बराबर बहू को व्रत करने का निषेध करने लगी और व्रत छोड़ने के लिए बहू को बाध्य करने लगी। व्रत भंग होने के फलस्वरूप गणेश जी कुछ दिनों में कुपित हो गये और उसके पुत्र के विवाह काल में वर-वधू के सुमंगली के समय उसके पुत्र का अपरहण कर लिया। इस अनहोनी घटना से मंडप में खलबली मच गई।
सब लोग व्याकुल होकर कहने लगे, लड़का कहाँ गया? किसने अपरहण कर लिया। बारातियों द्वार ऐसा समाचार पाकर उसकी माता अपने ससुर दयादेव से रो-रोकर कहने लगी। हे ससुरजी! आपने मेरे गणेश चतुर्थी व्रत को छुड़वा दिया है, जिसके परिणाम स्वरुप ही मेरा पुत्र गायब हो गया हैं। अपनी पुत्रवधू के मुख से ऐसी बात सुनकर ब्राह्मण दयादेव बहूत दुखी हुए। साथ ही पुत्रवधू भी दुखित हुई। पति के लिए दुखित पुत्रवधू प्रति मास संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगी।

एक समय की बात है कि गणेश जी एक वेदज्ञ और दुर्बल ब्राह्मण का रूप धारण करके भिक्षाटन के लिए इस मधुरभाषिणी के घर आए। ब्राह्मण ने कहा कि हे बेटी! मुझे भिक्षा स्वरुप इतना भोजन दो कि मेरी क्षुधा शांत हो जाए। उस ब्राह्मण की बात सुनकर उस धर्मपरायण कन्या ने उस ब्राह्मण का विधिवत पूजन किया। भक्ति पूर्वक भोजन कराने के बाद उसने ब्राह्मण को वस्त्रादि दिए।
कन्या की सेवा से संतुष्ट होकर ब्राह्मण कहने लगा - हे कल्याणी! हम तुम पर प्रसन्न हैं, तुम अपनी इच्छा के अनुकूल मुझसे वरदान प्राप्त कर लो। मैं ब्राह्मण वेशधारी गणेश हूँ और तुम्हारी प्रीति के कारण आया हूँ। ब्राह्मण की बात सुनकर कन्या हाथ जोड़कर निवेदन करने लगी - हे विघ्नेश्वर! यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे मेरे पति के दर्शन करा दीजिये। कन्या की बात सुनकर गणेश जी ने उससे कहा कि हे सुन्दर विचार वाली, जो तुम चाहती हो वही होगा। तुम्हारा पति शीघ्र ही आवेगा। कन्या को इस प्रकार का वरदान देकर गणेश जी वहीँ अंतर्ध्यान हो गए।

कुछ समय के बाद उसका पति घर वापस आ गया। सभी बहुत प्रसन्न हुए, विधि अनुसार विवाह कार्य सम्पन्न किया। इस प्रकार ज्येष्ठ मास की चौथ सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है।

निष्कर्ष

ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है।

यह व्रत मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करता है और भक्तों को भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन व्रत रखने से न केवल हमारी कठिनाइयां और समस्याएं दूर होती हैं, बल्कि हमें आध्यात्मिक बल भी मिलता है।

ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत करना और व्रत कथा का श्रवण करना हमें जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह पर्व हमें विश्वास, श्रद्धा और संकल्प के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

इस प्रकार, ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा का महत्त्व अपार है और इसे सही विधि-विधान से करने से जीवन में अनंत सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। गणपति बप्पा की कृपा से हर भक्त का जीवन मंगलमय हो, यही प्रार्थना है।

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