Gangaur Vrat Katha(गणगौर व्रत कथा) in Hindi

भारत विविधता में एकता का देश है, जहाँ विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक त्योहारों का अपना विशिष्ट महत्व है। इन्हीं त्योहारों में से एक है गणगौर, जो मुख्यतः राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है।

गणगौर का त्योहार विशेष रूप से महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, जो इस अवसर पर गणगौर व्रत कथा सुनती और कहती हैं। इस व्रत का प्रमुख उद्देश्य अखंड सौभाग्य और वैवाहिक जीवन की सुख-समृद्धि की कामना करना होता है।

गणगौर व्रत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया से प्रारम्भ होकर 18 दिन तक चलता है। इस अवधि के दौरान महिलाएँ प्रतिदिन सुबह-शाम माँ गौरी और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करती हैं।

व्रत की समाप्ति पर सुहागिन महिलाएँ गणगौर माता की मूर्ति को पानी में विसर्जित करती हैं, जो उनके अखंड सौभाग्य का प्रतीक होता है। इस व्रत की कथा माँ पार्वती और भगवान शिव के विवाह की पौराणिक कहानी पर आधारित है, जिसमें माँ पार्वती ने कठोर तपस्या कर शिव जी को पति रूप में प्राप्त किया था।

गणगौर व्रत कथा के दिन महिलाएँ अपने घरों को सजाती हैं और सुहाग की समस्त सामग्रियों से माँ गौरी की पूजा करती हैं। इस व्रत के दौरान गाए जाने वाले लोक गीतों में गणगौर माता की महिमा का वर्णन होता है, जो सभी के हृदय को भक्ति और श्रद्धा से भर देता है।

महिलाएँ एक दूसरे के साथ मिलकर व्रत कथा का पाठ करती हैं, जिससे समाज में भाईचारे और आपसी प्रेम की भावना प्रबल होती है।

गणगौर व्रत कथा

एक समय की बात है, भगवान शंकर, माता पार्वती जी एवं नारदजी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए। वे चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गाँव में पहुँचे। उनका आगमन सुनकर ग्राम की निर्धन स्त्रियाँ उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी एवं अक्षत लेकर पूजन हेतु तुरतं पहुँच गई।
पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटीं। धनी वर्ग की स्त्रियाँ थोडी देर बाद अनेक प्रकार के पकवान सोने-चाँदी के थालो में सजाकर पहुँची।

इन स्त्रियाँ को देखकर भगवान् शंकर ने माता पार्वती से कहा: तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी?

पार्वतीजी बोलीं: प्राणनाथ! उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थो से बना रस दिया गया है। इसलिए उनका रस धोती से रहेगा। परन्तु मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रस दूँगी जो मेरे समान सौभाग्यवती हो जाएँगी।

जब इन स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीरकर उस रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया। जिस पर जैसे छीटें पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया। इसके बाद पार्वती जी अपने पति भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गईं।

स्नान करने के पश्चात् बालू की शिवजी मूर्ति बनाकर पूजन किया। भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद खाकर मस्तक पर टीका लगाया।
उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया: आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोक्ष को प्राप्त होगा। भगवान शिव यह वरदान देकर अन्तर्धान हो गए।

इतना सब करते-करते पार्वती जी को काफी समय लग गया। पार्वतीजी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहाँ पर भगवान शंकर व नारदजी को छोड़कर गई थीं। शिवजी ने विलम्ब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी बोली, मेरे भाई-भावज नदी किनारे मिल गए थे। उन्होने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया। इसी कारण से आने में देर हो गई।

ऐसा जानकर अन्तर्यामी भगवान शंकर भी दूध भात खाने के लालच में नदी तट की ओर चल दिए। पार्वतीजी ने मौन भाव से भगवान शिवजी का ही ध्यान करके प्रार्थना की, भगवान आप अपनी इस अनन्य दासी की लाज रखिए। प्रार्थना करती हुई पार्वती जी उनके पीछे-पीछे चलने लगी। उन्हे दूर नदी तट पर माया का महल दिखाई दिया। वहाँ महल के अन्दर शिवजी के साले तथा सहलज ने शिव पार्वती का स्वागत किया।

वे दो दिन वहाँ रहे, तीसरे दिन पार्वती जी ने शिवजी से चलने के लिए कहा तो भगवान शिव चलने को तैयार न हुए। तब पार्वती जी रूठकर अकेली ही चल दी। ऐसी परिस्थिति में भगवान शिव को भी पार्वती के साथ चलना पड़ा। नारदजी भी साथ चल दिए। चलते-चलते भगवान शंकर बोले, मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया। माला लाने के लिए पार्वतीजी तैयार हुई तो भगवान ने पार्वतीजी को न भेजकर नारद जी को भेजा ।

वहाँ पहुँचने पर नारद जी को कोई महल नजर नहीं आया। वहाँ दूर-दूर तक जंगल ही जंगल था। सहसा बिजली कौंधी, नारदजी को शिवजी की माला एक पेड पर टंगी दिखाई दी। नारदजी ने माला उतारी और शिवजी के पास पहुँच कर यात्रा कर कष्ट बताने लगे।

शिवजी हँसकर कहने लगे: यह सब पार्वती की ही लीला हैं।
इस पर पार्वती जी बोलीं: मैं किस योग्य हूँ। यह सब तो आपकी ही कृपा है।

ऐसा जानकर महर्षि नारदजी ने माता पार्वती तथा उनके पतिव्रत प्रभाव से उत्पन्न घटना की मुक्त कंठ से प्रंशसा की।

समापन

गणगौर व्रत कथा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी सजीव रखती है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएँ न केवल अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, बल्कि पारंपरिक मूल्यों और रीति-रिवाजों का भी पालन करती हैं।

गणगौर का त्योहार यह सिखाता है कि कठिन परिश्रम और अटूट श्रद्धा से हर इच्छा पूर्ण हो सकती है, जैसा कि माँ पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए किया था। यह त्योहार हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखता है और हमारी संस्कृति को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

गणगौर व्रत कथा सुनने और कहने से हमें न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि यह हमें हमारे पारिवारिक और सामाजिक जीवन को सुदृढ़ बनाने की प्रेरणा भी देता है। अतः इस पावन अवसर पर हम सभी को गणगौर व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए और इसके धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व को समझना चाहिए।

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