Dashavtar Stotram: Pralay Payodhi Jale (श्री दशावतार स्तोत्र: प्रलय पयोधि-जले) In Hindi

हिंदू धर्म में, भगवान विष्णु के दस अवतारों को लेकर 'दशावतार स्तोत्र' महत्वपूर्ण है। 'प्रलय पयोधि-जले' भी इस स्तोत्र का एक अध्याय है, जो भगवान विष्णु के अवतारों की महिमा को गाता है।

श्री दशावतार स्तोत्र: प्रलय पयोधि-जले

प्रलय पयोधि-जले धृतवान् असि वेदम्
विहित वहित्र-चरित्रम् अखेदम्
केशव धृत-मीन-शरीर, जय जगदीश हरे

क्षितिर् इह विपुलतरे तिष्ठति तव पृष्ठे
धरणि- धारण-किण चक्र-गरिष्ठे
केशव धृत-कूर्म-शरीर जय जगदीश हरे

वसति दशन शिखरे धरणी तव लग्ना
शशिनि कलंक कलेव निमग्ना
केशव धृत शूकर रूप जय जगदीश हरे

तव कर-कमल-वरे नखम् अद्भुत शृंगम्
दलित-हिरण्यकशिपु-तनु-भृंगम्
केशव धृत-नरहरि रूप जय जगदीश हरे

छलयसि विक्रमणे बलिम् अद्भुत-वामन
पद-नख-नीर-जनित-जन-पावन
केशव धृत-वामन रूप जय जगदीश हरे

क्षत्रिय-रुधिर-मये जगद् -अपगत-पापम्
स्नपयसि पयसि शमित-भव-तापम्
केशव धृत-भृगुपति रूप जय जगदीश हरे

वितरसि दिक्षु रणे दिक्-पति-कमनीयम्
दश-मुख-मौलि-बलिम् रमणीयम्
केशव धृत-राम-शरीर जय जगदीश हरे

वहसि वपुशि विसदे वसनम् जलदाभम्
हल-हति-भीति-मिलित-यमुनाभम्
केशव धृत-हलधर रूप जय जगदीश हरे

नंदसि यज्ञ- विधेर् अहः श्रुति जातम्
सदय-हृदय-दर्शित-पशु-घातम्
केशव धृत-बुद्ध-शरीर जय जगदीश हरे

म्लेच्छ-निवह-निधने कलयसि करवालम्
धूमकेतुम् इव किम् अपि करालम्
केशव धृत-कल्कि-शरीर जय जगदीश हरे

श्री-जयदेव-कवेर् इदम् उदितम् उदारम्
शृणु सुख-दम् शुभ-दम् भव-सारम्
केशव धृत-दश-विध-रूप जय जगदीश हरे

वेदान् उद्धरते जगंति वहते भू-गोलम् उद्बिभ्रते
दैत्यम् दारयते बलिम् छलयते क्षत्र-क्षयम् कुर्वते
पौलस्त्यम् जयते हलम् कलयते कारुण्यम् आतन्वते
म्लेच्छान् मूर्छयते दशाकृति-कृते कृष्णाय तुभ्यम् नमः
- श्री जयदेव गोस्वामी

विशेषता:

इस स्तोत्र में, भगवान विष्णु के दस अवतारों की महिमा को गाते हुए, उनके असीम समर्पण और शक्ति का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान के अद्वितीय स्वरूप का अनुभव कराता है और उन्हें आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है।

महत्व:

दशावतार स्तोत्र के पाठ से भक्त भगवान विष्णु के प्रति अपनी श्रद्धा और विश्वास को स्थायी करते हैं, और उनके जीवन में धर्म, सत्य और न्याय के मूल्यों को स्थापित करते हैं।

समापन:

दशावतार स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को भगवान विष्णु के दिव्य गुणों का अनुभव होता है और उन्हें आध्यात्मिक समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र का अध्ययन करने से भक्त अपने जीवन को धार्मिकता, समर्पण और निष्काम कर्म के माध्यम से प्रगट करते हैं।

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